लव इन ऑटोरिक्शा टाइम्स

लव इन ऑटोरिक्शा टाइम्स

हे रिक्शावाले, राजपुर रोड चलोगे?
बैठिये मैडम।
आप जॉब करते है क्या मैडम? पर आप यहाँ की तो नहीं लगती।
हाँ. मैं दिल्ली की नहीं हूँ. यहाँ न्यूज़पेपर में रिपोर्टर का काम करती हूँ।
मैं भी किसी को जानता हूँ जो हमेशा रिपोर्टर बनना चाहती थी.
अच्छा! कौन, कहाँ?

वो भूली दास्ताँ लो फिर याद आ गयी,
नज़र के सामने घटा सी छा गयी....

ऍफ़ ऍम पे बजते गाने के सुरों के साथ कुछ पुरानी यादें भी उमड़ आईं।

रुद्रपुर में, मैडम। रजनी, हमारी दूर की भाभी की बहिन थी. हम गए थे बरात में, वहीं मिली थी. वो तब सत्रह साल की थी और हम बीस के।
रुद्रपुर? रजनी?
हाँ मैडम। यूँ ही फेरों की अग्नि की लाल-पीली-नारंगी रौशनी में हमने भी कुछ सतरंगे सपने देखे थे।
फ़िर ?
फिर क्या मैडम? हम ठहरे अनाथ जिसका आगे नाथ ना पीछे पगहा, पढाई पूरी हुई ना थी और पैसे-लत्ते का ज्यादा कोई जुगाड़ था नही. सो भइया ने जब शादी की बात करी तो हर तरफ़ से ना ही सुनने को मिली। दिल पे झटका लगा तो फिर हम भी चले आये शहर.
और ये ऑटो?
यहाँ आकर हमने पहले अपनी ग्रेजुएशन पूरी करी और अब इग्नू से एम बी ए कर रहे हैं. ये ऑटो तो हम पार्ट टाइम चलाते हैं, फ़ीस और खर्चे पानी के लिए.
पर तुमने उस लड़की से उसकी मर्ज़ी कभी नहीं पूछी? कभी पलट कर वापस नहीं गए?मैडम, हमारी तरफ़ की लड़कियों की ज़ुबान ही ना होती तो उनकी मर्ज़ी कौन पूछने देता? पर जैसे ही हमें एक अच्छी नौकरी मिल जायेगी, हम जाएंगे जरूर !
और तब तक अग़र उसकी शादी हो गयी तो?
नहीं मैडम, अपनी क़िस्मत इतनी भी ख़राब नहीं हो सकती. वो हमें मिलेगी ज़रूर. लीजिये, आपकी मंज़िल आ गयी.
और तुम्हारी मंज़िल, विनय?
मेरी मन्ज़िल....विनय....आपको मेरा नाम कैसे मालूम?

क्यों पहचाना नहीं अपनी रिपोर्टर रजनी को, इतना ही भरोसा था अपने प्यार पे?

और आप सभी प्यार करने वालों के लिए हाज़िर है एक और टाइमलैस क्लासिक.… आर जे नितिन की ओर से.….

कबके बिछड़े हुए हम आज कहाँ आ के मिले,
जैसे सावन से कभी प्यासी घटा छा के मिले....



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