तुम कब लौटोगे? 

अब तो फ़रवरी के कुहसाये दिन और सर्द रातें भी इतिहास हो गयीं. मार्च में छितराये होली के रंग भी फीके पड़ चुके. . बच्चों की परीक्षाओं के परिणाम आ चुके, नए साल की पढाई भी शुरू हो गयी. बजट सेशन ख़त्म हो गया, लैंड एक्वीजीशन बिल पे झगड़ा-धरना-प्रदर्शन भी हो चुके और प्रधान मंत्री अपना भारत प्रवास समाप्त कर वापस यूरोप जा चुके. पर तुम ना कहीं दिखे. लोगों के चेहरे से मुस्कान गायब है, मायूसी अपने पैर चारो ओर पसार रही है. कुछ दूरदर्शी खोजी आँखें भी तुम्हारे ठौर ठिकाने ना जान पा रहीं सो अब तो ना टी वी देखने में, ना अख़बार पढ़ने में वो मज़ा है. यूँ अपने चाहनेवालों को धोखा दे कर तुम अचानक कहाँ चले गए? यहाँ तक कि तुम्हारे वियोग से व्याकुल आकाश में बादल मचल मचल कर आँसू बरसा रहे हैं, पेड़ों पे नई कोपलें तुम्हें देखने को बेक़रार हो रही हैं और लू ने अपने रंग दिखाने से मना कर दिया है. विरह पीड़ा से त्रस्त इंटरनेट योद्धाओं की चुटकुलों की दुकान बंद होने की नौबत आ गयी है.
आखिर तुम कहाँ हो, कब लौटोगे?
अब तो लौट आओ, राहुल!

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