मेरा भारत महान, पर नहीं चाहिए अब कोई एहसान
है अग़र ये मेरी भी ज़मीन, ये देश मेरा भी
अगर संविधान में हम-तुम बराबर हैं
तो तुम्हारे-मेरे बीच ये ऊँची दीवारें क्यों हैं
तुम अपने घर में सुरक्षित, स्वादिष्ट खाना खाते
और हम इस भयानक चिलचिलाती धूप-गर्मी में
भूखे-प्यासे सड़क पर चलने को मजबूर क्यों हैं
सच तो ये है कि ना हमारी कोई जात ना धरम
तुम राजा और हम सिर्फ़ ग़रीब प्रजा हैं
हम वो धोबी का कुत्ता हैं जो ना घर का ना घाट का होता है
सवा सौ करोड़ भारतीयों की लम्बी सी
वोटर लिस्ट में सिर्फ़ एक अदना सा नाम हैं
जिसका महत्त्व सिर्फ़ चुनाव के दिन तक होता है
सड़क की धूल या कहो तो
सिर्फ़ एक मामूली पत्थर हैं हम
जिसका अपना कोई वजूद, कोई पहचान नहीं
जिसे तुम जब चाहो ठोकर मार दो
जब चाहो तो उठा कर चुन दो
अपनी लालसाओं के महल के नींव में
विकास और अच्छे दिन के बड़े बड़े महत्वकांक्षी नारों,
अपनी मीठी लच्छेदार बातों से, अपने झूठे वादों से
छला है तुमने हमें, कभी अल्लाह कभी राम के नाम पर
कभी देशभक्ति की भड़काऊ भावनाओं में बहा कर
विभाजित कर दिया है तुमने समाज को
क्योंकि जनता की एकता तुम्हारे लिए खतरा है
और आत्मनिर्भर तुम क्या बनाओगे हमें
अरे निर्भर तो हमेशा से तुम थे हम पर,
अपने झूठे बर्तन, गंदे कपड़े और घर साफ करने के लिए
तुम्हे ज़रुरत थी हमारी अपने बदबूदार बाथरूम धोने के लिए
तुम्हें मुबारक़ तुम्हारी ए सी घर और गाड़ियां
हम अपने पांवों पर चलना नहीं भूले कभी
जा रहे हैं छोड़ कर हम तुम्हारी मायानगरी
अपने गाँव, जर्जर ही सही वहां घर तो है
अब ना कोई श्लोक ना अध्यात्म का ज्ञान
ना तप और त्याग का नया पैग़ाम देना,
ना हमारी मजबूरी को महानता का नाम देना
शुक्रिया तुम्हारा, बस बेवज़ह अब हम पर कोई एहसान ना करना।
Bahut khoob, it's touching.
ReplyDeletePowerful & heartfelt picturization in your words.
Thank you for prompting me to pen this. Also for reading, appreciating and sharing your thoughts.
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