Tum Laut Aana Jaldi
मेरी नयी कविता जो अभी कुछ दिन पहले ही The Anonymous Writer हिंदी पर पहली बार प्रकाशित हुई है।
तुम लौट आना जल्दी
मौसम की शायद आखिरी बारिश,
मधुमालती के गुलाबी सफ़ेद फूल
और मासूम कोपलों पे अटकी नन्हीं बूंदें
मानो अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए जूझती हुई
तेज़ हवा के झोंकों से।
ढलती शाम का सीला धुँधलका
और फ़िज़ा में उमड़ती यादों की महक़,
तुम्हारी
और मेरी
कुछ साझा यादें।
उकेरी थीं चंद ख़ूबसूरत लकीरें जब हम ने
अपने भविष्य के नक़्शे पे
अपने प्यार के सुनहरे दिनों की
उम्मीद में।
फिर जाने कैसे नासमझी का अंधड़ चला
और अहम् के कंक्रीट पे
गलतफहमियों की मीनारें चुन गयीं।
वो भी साँझ का ही वक़्त था
मग़र एक गर्म तपती शाम।
ढल चुके सूरज की
लालिमा अब भी क्षितिज पर विद्यमान थी
पर गहराती रात की कालिमा पेड़ों को निगलने लगी थी,
बिलकुल हमारे स्याह पड़ते रिश्ते की मानिंद,
बिलकुल हमारे प्यार में धीरे-धीरे घुलती कड़वाहट की तरह।
बारिश तो नहीं, पर नमी उस रोज़ भी थी
मेरी आँखों के कोनों पर ठहरी।
शायद अटका हुआ था एक क़तरा तुम्हारी पलकों में भी
पलट कर ढक लिया था अपने सतरंगी दुपट्टे से तुमने उसे
तेज़ी से उतरते अंधियारे ने
अपने अंदर समो लिया था जिसके चमकीले रंगों को,
वैसे ही जैसे फीके पड़ रहे थे रंग
हमारे रिश्ते के।
फ़िज़ा में फैली गर्माहट के बावजूद भी
ठंडी पड़ रही थी भरोसे की आंच,
डगमगा रही थी प्यार की नींव।
जुबां ख़ामोश थी,
शब्द बेसुध हो गए हों मानो।
कहीं कुछ दरक रहा था,
बिखर रहा था
कांच की किरचों की तरह।
पर क्या?
और क्यों?
जवाब ढूंढ रहे थे हम दोनों ही।
अहम् के मकड़जाल में उलझे,
अपने प्यार के अस्तित्व को बचाने की कोशिश में
असहाय, असफल।
थरथराती उंगलियों से छुआ था मैं ने दामन तुम्हारा,
सतरंगी दुपट्टे की दीवार के उस पार
देखूँ तो, क्या चल रहा है लरजती आँखों में तुम्हारी।
सूनी आँखों के खालीपन में भी इक तूफ़ान उमड़ रहा था
अनुत्तरित सवालों का,
अनबूझे जवाबों का।
गर्म रेत की ज़मीन पर भी
'पहले तुम बोलो' का अभेद्य हिमालय अटल खड़ा था
हमारे बीच।
'ज़रूरी नहीं सब कुछ सहेज कर रखा जाये,
कभी-कभी सब कुछ ख़त्म कर देना ही अच्छा होता है'
एक सदी से लम्बे अंतराल के बाद ये तुम्हारे आख़िरी शब्द
और सब कुछ इतिहास हो गया,
हमेशा के लिए।
पर क्या वाक़ई?
मैं तो आज भी वहीँ खड़ा हूँ
तुम्हारे पलट कर जाते क़दमों की छाप अपने दिल पे संजोए,
तुम्हारे लौट आने की उम्मीद में।
नम है आसमां आज भी,
पर मेरे अंदर तो आज भी सूखा पड़ा है,
एक नयी शुरुआत के इंतज़ार में।
तुम हो नहीं यहाँ,
मैं जानता हूँ ,
पर जहाँ भी हो,
लौट आना जल्दी।
तुम लौट आना जल्दी
मौसम की शायद आखिरी बारिश,
मधुमालती के गुलाबी सफ़ेद फूल
और मासूम कोपलों पे अटकी नन्हीं बूंदें
मानो अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए जूझती हुई
तेज़ हवा के झोंकों से।
ढलती शाम का सीला धुँधलका
और फ़िज़ा में उमड़ती यादों की महक़,
तुम्हारी
और मेरी
कुछ साझा यादें।
उकेरी थीं चंद ख़ूबसूरत लकीरें जब हम ने
अपने भविष्य के नक़्शे पे
अपने प्यार के सुनहरे दिनों की
उम्मीद में।
फिर जाने कैसे नासमझी का अंधड़ चला
और अहम् के कंक्रीट पे
गलतफहमियों की मीनारें चुन गयीं।
वो भी साँझ का ही वक़्त था
मग़र एक गर्म तपती शाम।
ढल चुके सूरज की
लालिमा अब भी क्षितिज पर विद्यमान थी
पर गहराती रात की कालिमा पेड़ों को निगलने लगी थी,
बिलकुल हमारे स्याह पड़ते रिश्ते की मानिंद,
बिलकुल हमारे प्यार में धीरे-धीरे घुलती कड़वाहट की तरह।
बारिश तो नहीं, पर नमी उस रोज़ भी थी
मेरी आँखों के कोनों पर ठहरी।
शायद अटका हुआ था एक क़तरा तुम्हारी पलकों में भी
पलट कर ढक लिया था अपने सतरंगी दुपट्टे से तुमने उसे
तेज़ी से उतरते अंधियारे ने
अपने अंदर समो लिया था जिसके चमकीले रंगों को,
वैसे ही जैसे फीके पड़ रहे थे रंग
हमारे रिश्ते के।
फ़िज़ा में फैली गर्माहट के बावजूद भी
ठंडी पड़ रही थी भरोसे की आंच,
डगमगा रही थी प्यार की नींव।
जुबां ख़ामोश थी,
शब्द बेसुध हो गए हों मानो।
कहीं कुछ दरक रहा था,
बिखर रहा था
कांच की किरचों की तरह।
पर क्या?
और क्यों?
जवाब ढूंढ रहे थे हम दोनों ही।
अहम् के मकड़जाल में उलझे,
अपने प्यार के अस्तित्व को बचाने की कोशिश में
असहाय, असफल।
थरथराती उंगलियों से छुआ था मैं ने दामन तुम्हारा,
सतरंगी दुपट्टे की दीवार के उस पार
देखूँ तो, क्या चल रहा है लरजती आँखों में तुम्हारी।
सूनी आँखों के खालीपन में भी इक तूफ़ान उमड़ रहा था
अनुत्तरित सवालों का,
अनबूझे जवाबों का।
गर्म रेत की ज़मीन पर भी
'पहले तुम बोलो' का अभेद्य हिमालय अटल खड़ा था
हमारे बीच।
'ज़रूरी नहीं सब कुछ सहेज कर रखा जाये,
कभी-कभी सब कुछ ख़त्म कर देना ही अच्छा होता है'
एक सदी से लम्बे अंतराल के बाद ये तुम्हारे आख़िरी शब्द
और सब कुछ इतिहास हो गया,
हमेशा के लिए।
पर क्या वाक़ई?
मैं तो आज भी वहीँ खड़ा हूँ
तुम्हारे पलट कर जाते क़दमों की छाप अपने दिल पे संजोए,
तुम्हारे लौट आने की उम्मीद में।
नम है आसमां आज भी,
पर मेरे अंदर तो आज भी सूखा पड़ा है,
एक नयी शुरुआत के इंतज़ार में।
तुम हो नहीं यहाँ,
मैं जानता हूँ ,
पर जहाँ भी हो,
लौट आना जल्दी।
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