पाप मुक्ति वाया शुद्ध स्नान
पाप मुक्ति वाया शुद्ध स्नान
मात्र ग्यारह रुपये में पाप मुक्ति? हैं! ये खबर सही है क्या भइया कि राजस्थान में एक मंदिर वाले वहां के सरोवर में स्नान करने के बाद पाप मुक्त हो जाने का सर्टिफिकेट दे देते हैं? वो भी सिर्फ ग्यारह रुपये ले कर??
वैसे आज ये चमत्कारी खबर सुनी तो एक बहुत पुरानी बात याद आ गयी, हमारे बचपन की है पर आज भी जब याद आती है तो हम सब भाई बहन अनायास ही हँस पड़ते हैं। हमारे घर के सामने, मने सड़क के उस पार एक परिवार रहता था, इलाहाबाद के पक्के ब्राह्मण थे। अंकल जी बिजली विभाग में इंजीनियर थे, सरकारी मकान, गाड़ी, नौकर-चाकर सब मिला हुआ था. फिर भी गांव देहात के तीन-चार लड़के हर टाइम उनके घर में पड़े ही रहते थे। चच्चा से सरकारी नौकरी की आशा में उनकी गइयों के बाड़े के बाहर ही डेरा डाले रहते और कभी गइया दुहते कभी कंडे थापते....हाँ भई, तीन-चार गौ माता भी पाली गयी थीं, आखिर चार-चार बच्चों के लिए शुद्ध दूध-दही-मक्खन का इंतजाम भी तो चाहिए, बाकी का बचा दूध पड़ोस के घरों में बिक जाता था. तो कुल मिला के आंटी जी के पास काम धाम बहुत था, चाहे आप खाना-कपड़ा=पोंछा नहीं कर रहे पर इतने सारे लोगों के काम का निरीक्षण करना भी तो एक काम ही है. अब चूँकि उनके बच्चे कुछ हम लोगों की उम्र के ही थे तो दोस्ती सी हो गयी थी. तो जब भी उनके घर जाओ तो नौकरों-लड़कों को फटकारते-डांटते हुए भी आंटीजी रोक ही लेती और कभी मिठाई तो कभी सेब-अंगूर परोस देती। शरमाते-ललचाते हम खा तो लेते पर फिर घर आकर अपनी मम्मी के गले पड़ जाते कि आप ये सब बढ़िया वाला फल-मिठाई काहे ना लाती हो, जब देखो वही घर के बगीचे के सूखे बेस्वाद अमरुद या बेर पकड़ा देती हो. मम्मी कुछ कहते-कहते एकदम से चुप हो जाती पर बाल-बुद्धि फिर भी सवाल पे सवाल दागे ही जाती, आप दोनों लोग कमाते हो, वहाँ तो सिर्फ अंकल जी कमाने वाले हैं, उनके घर में इतने सारे लोग हैं और हमारा परिवार तो इतना छोटा है फिर भी आप इतना कंजूसी काहे करते हो? उस वक़्त तो माँ हमें बहला-फुसला-डांट के चुप करा देती पर हमें तो अंकलजी के रोज-रोज आने वाले मेहमान दूर से भी दिख जाते थे.
खैर, कुछ दिन बाद आंटीजी के घर से न्यौता आया रामायण जी के अखण्ड पाठ का, और उसके बाद भंडारे का. अफसर, दुकानदार, ठेकेदार....सभी सपरिवार न्यौते गए थे. आंटी अंकल जी के रिश्तेदार भी दूर दराज से पधारे। खूब धूमधाम से पाठ और भंडारा हुआ, करीब ६-७ सौ लोग तो जरूर रहे होंगे। फिर ये हर साल का कार्यक्रम हो गया, साल के आखिरी शनिवार रविवार को रामायण का अखण्ड पाठ और भंडारा! अब ये माजरा का है, हम सब बच्चे आपस में दिमाग लडियते रहते, कोई कहता काहे करते हैं ये सब हर साल? काहे इतना पइसा फ़ालतू उड़ाते रहते हैं? दूसरा बोलता कि हमरे हियाँ भी तो तीन-चार साल में अखण्ड पाठ होता है पर हमरे माई बापू तो भंडारा नाहीं कर पाते. कोई बच्चा कहता ये लोग बहुत पैसे वाला है तो कोई कहता हुह, दिखावा करते हैं ई लोग! मम्मी पापा या किसी उनके दोस्तों से पूछो तो भगा दिए जाते वहां से. फिर एक दिन हम आखिर सुन ही लिए बड़े लोगो की बातें, एक अंकलजी बोल रहे थे,''ये सब तो अपना पाप धोने के लिए करते हैं, साल भर खूब कंपनी वालों और ठेकेदारों को लूटते हैं और साल के आखिर में भगवान के नाम पर पूजा पाठ कर के सारे पाप धोने का कोशिश करते हैं ! '
अरे दद्दा रे! तो ये राज था आंटी जी के काजू किशमिश और सेब अंगूर का......और हम अपने मम्मी पापा से ऐंवई ठिनकते रहते थे!
अब बताइए जरा, अगर पाप धोने का ये सस्ता तरीका पहले मालूम होता तो अंकलजी के कितने पैसे और मेहनत बच गए होते! वैसे पाप धोने के लिए मंदिरों में अंधाधुंध दान देने का उपाय सबसे अचूक नहीं है तो मंदिरों की आमदनी 27% तक बढ़ कैसे गयी है!
तो ये तो बड़ी मस्त खबर है यार! पहले क्यूँ ना बताया किसी ने? इसका तो टीवी, रेडियो, अखबार में धड़ाधड़ विज्ञापन होना चाहिए था। अब अपने सारे नेताओं, लुटेरों, चोरबाजारी वाले, सूदखोरों, किलर लोगों के लिए तो कितनी सुविधा हो जाती......चलो आज किसी को लूटो, धमकाओ, मार दो और कल जाके सरोवर में नहाओ, इस हाथ ग्यारह रुपये दो उस हाथ पाप मुक्ति का सर्टिफिकेट ले लो! वैसे वो मंदिर वाले कहते हैं कि किसान लोग के खेती करते टाइम मिट्टी में कीड़े मकोड़े मर जाते हैं या फिर किसी के चलते फिरते पैरों के नीचे आ जाते हैं, मने गलती से पाप हो जाता है तब वो यहाँ आते हैं और पाप की भावना से मुक्ति के लिए स्नान करके शांत मन से घर लौट जाते हैं.......भाई, मेरे पास सर्टिफिकेट है, तुम्हारे पास क्या है!
ओह वाओ......हाउ वेरी कनविनिएंट! पर भाई साहब अब ग्यारह रुपैय्ये में होता क्या है? महंगाई आसमान छू रही है, पंडितों ने भी घर बार चलाना है कि नहीं! चलो कोई ना...... ये सब दिलदार बन्दे हैं, खर्च करने में सकुचाएंगे ना.....अच्छा बोली लगाओ, जिसकी बोली सबसे बड़ी उसको सबसे पहले नहाने का और सर्टिफिकेट पाने का मौका मिलेगा. तो भाइयों बहनों, ग्यारह हज़ार एक, ग्यारह हज़ार दो.......
#पापमुक्तिइनकलयुगटाइम्स
मात्र ग्यारह रुपये में पाप मुक्ति? हैं! ये खबर सही है क्या भइया कि राजस्थान में एक मंदिर वाले वहां के सरोवर में स्नान करने के बाद पाप मुक्त हो जाने का सर्टिफिकेट दे देते हैं? वो भी सिर्फ ग्यारह रुपये ले कर??
वैसे आज ये चमत्कारी खबर सुनी तो एक बहुत पुरानी बात याद आ गयी, हमारे बचपन की है पर आज भी जब याद आती है तो हम सब भाई बहन अनायास ही हँस पड़ते हैं। हमारे घर के सामने, मने सड़क के उस पार एक परिवार रहता था, इलाहाबाद के पक्के ब्राह्मण थे। अंकल जी बिजली विभाग में इंजीनियर थे, सरकारी मकान, गाड़ी, नौकर-चाकर सब मिला हुआ था. फिर भी गांव देहात के तीन-चार लड़के हर टाइम उनके घर में पड़े ही रहते थे। चच्चा से सरकारी नौकरी की आशा में उनकी गइयों के बाड़े के बाहर ही डेरा डाले रहते और कभी गइया दुहते कभी कंडे थापते....हाँ भई, तीन-चार गौ माता भी पाली गयी थीं, आखिर चार-चार बच्चों के लिए शुद्ध दूध-दही-मक्खन का इंतजाम भी तो चाहिए, बाकी का बचा दूध पड़ोस के घरों में बिक जाता था. तो कुल मिला के आंटी जी के पास काम धाम बहुत था, चाहे आप खाना-कपड़ा=पोंछा नहीं कर रहे पर इतने सारे लोगों के काम का निरीक्षण करना भी तो एक काम ही है. अब चूँकि उनके बच्चे कुछ हम लोगों की उम्र के ही थे तो दोस्ती सी हो गयी थी. तो जब भी उनके घर जाओ तो नौकरों-लड़कों को फटकारते-डांटते हुए भी आंटीजी रोक ही लेती और कभी मिठाई तो कभी सेब-अंगूर परोस देती। शरमाते-ललचाते हम खा तो लेते पर फिर घर आकर अपनी मम्मी के गले पड़ जाते कि आप ये सब बढ़िया वाला फल-मिठाई काहे ना लाती हो, जब देखो वही घर के बगीचे के सूखे बेस्वाद अमरुद या बेर पकड़ा देती हो. मम्मी कुछ कहते-कहते एकदम से चुप हो जाती पर बाल-बुद्धि फिर भी सवाल पे सवाल दागे ही जाती, आप दोनों लोग कमाते हो, वहाँ तो सिर्फ अंकल जी कमाने वाले हैं, उनके घर में इतने सारे लोग हैं और हमारा परिवार तो इतना छोटा है फिर भी आप इतना कंजूसी काहे करते हो? उस वक़्त तो माँ हमें बहला-फुसला-डांट के चुप करा देती पर हमें तो अंकलजी के रोज-रोज आने वाले मेहमान दूर से भी दिख जाते थे.
खैर, कुछ दिन बाद आंटीजी के घर से न्यौता आया रामायण जी के अखण्ड पाठ का, और उसके बाद भंडारे का. अफसर, दुकानदार, ठेकेदार....सभी सपरिवार न्यौते गए थे. आंटी अंकल जी के रिश्तेदार भी दूर दराज से पधारे। खूब धूमधाम से पाठ और भंडारा हुआ, करीब ६-७ सौ लोग तो जरूर रहे होंगे। फिर ये हर साल का कार्यक्रम हो गया, साल के आखिरी शनिवार रविवार को रामायण का अखण्ड पाठ और भंडारा! अब ये माजरा का है, हम सब बच्चे आपस में दिमाग लडियते रहते, कोई कहता काहे करते हैं ये सब हर साल? काहे इतना पइसा फ़ालतू उड़ाते रहते हैं? दूसरा बोलता कि हमरे हियाँ भी तो तीन-चार साल में अखण्ड पाठ होता है पर हमरे माई बापू तो भंडारा नाहीं कर पाते. कोई बच्चा कहता ये लोग बहुत पैसे वाला है तो कोई कहता हुह, दिखावा करते हैं ई लोग! मम्मी पापा या किसी उनके दोस्तों से पूछो तो भगा दिए जाते वहां से. फिर एक दिन हम आखिर सुन ही लिए बड़े लोगो की बातें, एक अंकलजी बोल रहे थे,''ये सब तो अपना पाप धोने के लिए करते हैं, साल भर खूब कंपनी वालों और ठेकेदारों को लूटते हैं और साल के आखिर में भगवान के नाम पर पूजा पाठ कर के सारे पाप धोने का कोशिश करते हैं ! '
अरे दद्दा रे! तो ये राज था आंटी जी के काजू किशमिश और सेब अंगूर का......और हम अपने मम्मी पापा से ऐंवई ठिनकते रहते थे!
अब बताइए जरा, अगर पाप धोने का ये सस्ता तरीका पहले मालूम होता तो अंकलजी के कितने पैसे और मेहनत बच गए होते! वैसे पाप धोने के लिए मंदिरों में अंधाधुंध दान देने का उपाय सबसे अचूक नहीं है तो मंदिरों की आमदनी 27% तक बढ़ कैसे गयी है!
तो ये तो बड़ी मस्त खबर है यार! पहले क्यूँ ना बताया किसी ने? इसका तो टीवी, रेडियो, अखबार में धड़ाधड़ विज्ञापन होना चाहिए था। अब अपने सारे नेताओं, लुटेरों, चोरबाजारी वाले, सूदखोरों, किलर लोगों के लिए तो कितनी सुविधा हो जाती......चलो आज किसी को लूटो, धमकाओ, मार दो और कल जाके सरोवर में नहाओ, इस हाथ ग्यारह रुपये दो उस हाथ पाप मुक्ति का सर्टिफिकेट ले लो! वैसे वो मंदिर वाले कहते हैं कि किसान लोग के खेती करते टाइम मिट्टी में कीड़े मकोड़े मर जाते हैं या फिर किसी के चलते फिरते पैरों के नीचे आ जाते हैं, मने गलती से पाप हो जाता है तब वो यहाँ आते हैं और पाप की भावना से मुक्ति के लिए स्नान करके शांत मन से घर लौट जाते हैं.......भाई, मेरे पास सर्टिफिकेट है, तुम्हारे पास क्या है!
ओह वाओ......हाउ वेरी कनविनिएंट! पर भाई साहब अब ग्यारह रुपैय्ये में होता क्या है? महंगाई आसमान छू रही है, पंडितों ने भी घर बार चलाना है कि नहीं! चलो कोई ना...... ये सब दिलदार बन्दे हैं, खर्च करने में सकुचाएंगे ना.....अच्छा बोली लगाओ, जिसकी बोली सबसे बड़ी उसको सबसे पहले नहाने का और सर्टिफिकेट पाने का मौका मिलेगा. तो भाइयों बहनों, ग्यारह हज़ार एक, ग्यारह हज़ार दो.......
#पापमुक्तिइनकलयुगटाइम्स
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