KITNA KUCHH KAHNA BAAKI HAI

कितना कुछ कहना बाकी है
कितना कुछ सुनना बाकी है
गहरी ख़ामोशी इस पार भी है
कुछ ग़मगीन सा शोर उस पार भी है
कुछ चुभते सवालों की भीड़ इस ओर से है
कुछ कड़वे जवाबों की भरमार  उस ओर से है
गहराता अँधियारा उस ओर भी है
कुछ चौंधियाती सी रौशनी इस ओर भी है
सुकूँ की दो साँसे ना उस तरफ हैं
चैन की नींद ना इस तरफ को है

नाउम्मीदी का आलम हर ओर है
इक अजीब सी बेचैनी फ़िज़ा में ठहरी है
मुस्कुराहटों में तीखी तलवार सी धार भी है
शहद से मीठे लफ़्ज़ों में लिपटा एक पैना वार भी है
किस किस पर शक़ ना करें,
पीछे हर मेल-मुलाकात के भी
छुपता यूँ विश्वास का घात ही है
हर मदद को उठते हाथ में भी
आती महक ख़ूनी नरसंहार की है।



   

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