Awaara Jhonka
आवारा झोंका
मध्धम हवा का एक आवारा झोंका,
फिर साथ ले आया एक बंजारा सा ख्वाब,
फ़िर लौट आये नटखट बचपन के वो अलमस्त दिन,
और घर के आँगन की सुहानी रातें।
डाली पे लटके वो कच्चे-पक्के अमरुद और
आम के नए-नवेले बौर में गरमाते मौसम की आहट.
वो क्यारी में बैठ कर मटर के दाने चुगना और
छीमी पौधे में ही छोड़ देने की शरारत।
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रात की रानी की मदमस्त ख़ुशबू और
ओस में भीगा ठंडा-ठंडा गद्दा,
देर रात तक नीले आकाश में निहारना,
बादलो के साथ चंदा मामा की अठखेलियाँ,
ध्रुव तारे की जगमगाहट और सपनों की दुनिया,
फिर सूरज की पहली किरण के साथ
चिड़ियों की मधुर चहचहाहट और गिलहरियों की चिट-चिट,
स्कूल जाने से पहले भाई-बहन से मीठी खिट-पिट ।
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मीठी यादों की छाप अमिट
कह रही है पलट.....
उम्र की भूल भुलैयाँ में
बिसराये मासूम पलों की है फिर से झटक-मटक,
उफ़! ये मन तो है आवारा पागल दीवाना,
ये पुरवाई क्या आई, ले आयी काफ़िला यादों का,
फिर वो ही मौज-मस्ती, नाचना-गाना,
दोस्तों का वो ही रूठना-मनाना।
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टन-टन-टन-टन.……खाना खाना खाना खाना!
उफ़ बच्चों की ये शैतानी, ये थाली चम्मच बजाना!
ओ मम्मा जी, बस करो मन ही मन मुस्कुराना,
भूख लगी है, आप को अभी खाना भी है बनाना!
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fabulous poem mam :)
ReplyDeletethanks a ton Ekklavya......your comments are always welcome!
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