AGAAZ-EK NAYI SHURUAAT

आगाज़ - एक नई शुरुआत  


आहिस्ता- आहिस्ता
जाने कब, कहाँ, कैसे, फ़ना हो गई मुस्कुराह्ते,
न कोई इशारा, न कोई आहटें , बस यूँ ही, अनजाने - अनचाहे,
बढ़ते गए शिकवे -गिले, ख़ुद से, ख़ुदी से, ख़ुदा से। 

दरख्तों के साए लंबे होने लगे,
क्या ज़िन्दगी की शाम ढलने लगी ?
क्या यही मेरा मुस्तकबिल है?
क्या यही मेरा अंजाम?

सवाल परत-दर-परत बढ़ने लगे,

क्या ज़िन्दगी हो जायेगी यूँ ही फ़ना,
बिना पीछे छोड़े कोई क़दमो के निशाँ?
या हासिल होंगे कुछ भूले-बिसरे ख़्वाब,
और चेहरे की वही अनूठी आब ?

दिलो-दिमाग़ ने हामी भरी, हाँ 
यूँ न होगी मेरी कहानी बयाँ,
होगा फिर रोशन ये मेरा जहाँ,
मिलेंगे नए हमकदम यहाँ-वहाँ,

न होगा ये सफ़र तन्हा ,

नई चाहतें,नई ख्वाहिशें,यही है जुस्तजू मेरी,
हाँ, अंजाम नहीं, आगाज़  है ये,
नई मंज़िलें, नया मुस्तकबिल
करें इंतज़ार ,सफ़र यहाँ नहीं मेरा मुक़म्मिल।

इब्तिदा है , करो इस्तकबाल
एक नई सुबह का, कहे दिलो-जाँ,
है यकीं, फ़लक़ को चूमेंगें एक बार फिर,
मेरे कदमो के निशाँ।                 
    


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