नयी इबारत

कितनी मुद्दत बाद मिले हो
सिर्फ़ एक इत्तेफ़ाक़ की तरह
अपनी मोहब्बत की खातिर
फिर एक बार, मेहरबां मेरे,
इस सर्द रात का ये हिस्सा कर दिया 
लो आज सिर्फ़ तुम्हारे नाम
रख लो नम हवा का ये झोंका
एक क़तरा मेरे जिस्म का,
मेरी रूह का भी है जिसमें,
नहीं है ये सिर्फ़ एक पानी की बूँद
सानी है ये हमारी बिखरी यादों की
हमारी अधूरी कहानी की और
चंद लम्हों में अचानक उमड़ आयी
अजनबीयत, असहजता की
आदत सी हो गयी थी
इस अनकहे से दर्द की
इस शहर की तनहाई की
चले थे हम एक साथ जहाँ
हमसफ़र, हमसायों की तरह
छोड़ गए थे तुम वहाँ मुझे
सिर्फ़ मेरी परछाइयों के साथ
भटक रही थी आज तक तन्हा
उन्हीं गलियों उन्हीं चौराहों पर
किसी अनजाने पते की तलाश में
हाथों में वो ख़ाली लिफ़ाफ़े थामे
ख़त बेरंग, बेमानी हो चुके जिनके
बरसों बाद मिले हो तुम
वापस अब ले जाओ मुझ से
वो वादे, वो कसमें, वो मीठी निगाहें
वो गर्म उंगलियों की छुअन
लौटा रही हूँ तुम्हारा हर वो सामान
संजो लिया था जिसे अपने वजूद में
तुम्हारी अनमोल धरोहर की तरह
चलना नहीं मुझे अब किसी
बेमक़सद अनजान सफ़र पर,
हम तो मिले ही थे सिर्फ़
दो समानांतर सड़कों की तरह
साथ चल के भी ना मिलना ही
नियति है जिनकी
लिख ली है जब तुमने कहानी नयी
तो लाजमी है कि गढ़ लूँ मैं भी
नयी मंज़िलों की इबारत अपनी I

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