मुझे खुद अपनी ज़रूरत है!

मुझे खुद अपनी ज़रूरत है!
फिर आज वही प्यार भरी बाते, वही वादे
हम अपना ख्याल रख सकते हैं
पचास का पाला छू रही हो,
आप बस अपना ध्यान रखो,
सब अपनी ज़िन्दगियों में व्यस्त हो गए,
और उन्हें लगता है मैं ने बहुत काम कर लिए,
अब तो मेरे आराम करने के दिन हैं।
सबको लगता है अब उम्र हो चली है,
क्या वाक़ई?
सब कहते हैं आधी उम्र बीत चुकी
ज़िन्दगी के दिन-महीने-साल सिमट रहे हैं
अब तो बस खुद को समेट लो।

हाँ वाक़ई आधी उम्र तो बीत चुकी
पर आधी ज़िन्दगी तो अभी बाक़ी है,
कितने खूबसूरत लम्हे जीना अब भी बाक़ी है!
क्यों लगता है किसी को अब परवाह नहीं
मुझे तो मेरी, मेरी रूह की परवाह है
क्यों मान लूँ किसी को मेरी ज़रूरत नहीं
जबकि मुझे तो खुद अपनी ज़रूरत अब भी है!
तो सुबह की पहली चाय के साथ अब रूख़े अख़बार नहीं
अरिजीत के मख़मली सुर, फैज़ और गुलज़ार की नज़्में
सर्द हवा में थरथराते पत्तों पे नर्म ओस की बूंदे
कुहसाये आसमान से झाँकते सूरज की सिन्दूरी लालिमा

दानों की तलाश में मुंडेर पे फुदकती चिड़ियों की चूँ चूँ
डाल-डाल पे कुलांचे भरती गिलहरियों की चिट चिट
मधुमालती, मोगरे, गुड़हल, गुलाब को मोहती तितलियाँ,
ज़िन्दगी के इन्ही रंगों-ख़ुशबुओं को रूह की गहराइयों में समोती मैं
मेरा दूरदर्शी साथी-मेरा कैमरा और मेरी कलम,
चुन लेती हूँ बस इनके साथ कुछ नयी मुस्कुराहटें,
बुनती हूँ चंद नए छंद, गढ़ लेती हूँ नयी-पुरानी कहानियां,
रुपहली चांदनी के रहस्यमयी साये तले
टिमटिमाते तारों से जगमगाते आसमान में,
ढूँढ लेती हूँ कुछ अनचीन्हे गीत, कुछ नयी ग़ज़लें
व्याकुल पपीहे के विरही प्रणय गीत में,
रात की रानी की मनमोहिनी गंध में,
ढलती अंधियारी रात के गूंजते सन्नाटे में
छुपा लेती हूँ अलसायी पलकों में कुछ सपने नए,
टप-टप टपकती बारिश की बूंदो में

कलकल बहते पानी में तैरती क़ाग़ज़  की नावों में ,

कैमरे के लेंस और कीबोर्ड पे मचलती उंगलियों से
सहेज लेती हूँ चंद और मुस्कुराहटें अपने लिए,
जी लेती हूँ हर पल कुछ बेशकीमती लम्हे
और समेट लेती हूँ बस यूँ ही बची हुई आधी ज़िन्दगी अपनी
क्योकि मुझे.......अब भी अपनी ज़रूरत है!

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